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Monday, October 25, 2010

ग्रेच्युटी का फंडा

सैलरी स्लिप में एक राशि ग्रेच्युटी के तौर पर भी देखने को मिलती है। रिटायरमेंट अथवा संस्थान छोड़ते समय कर्मचारी को ग्रेच्युटी का भुगतान किया जाता है। हाल में ग्रेज्युटी की वर्तमान अधिकतम 3.5 लाख रुपये की सीमा को बढ़ाकर दस लाख करने की योजना है। यदि योजना पास हो जाती है तो कर्मचारियों को रिटायरमेंट के समय अधिक राशि मिलेगी।
किसी कंपनी में लगातार पांच साल या उससे अधिक काम करने के बाद ग्रेच्युटी के तौर पर एकमुश्त करमुक्त राशि कर्मचारी को मिलती है। सरकारी और गैरसरकारी दोनों संगठनों में ग्रेच्युटी दी जाती है। गैरसरकारी संगठन के कर्मचारी ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 के तहत आते हैं, जिसमें ऐसे नियुक्तिकर्त्ता जिनके पास पेरोल पर दस से अधिक कर्मचारी हैं, उन्हें अपने कर्मचारियों को रिटायरमेंट अथवा संस्थान छोड़ने की सिथति में ग्रेच्युटी देना अनिवार्य होगा।
सामान्यत: कर्मचारी ग्रेच्युटी की व्यवस्था एक फंड द्वारा करते हैं और मैनेजमेंट को किसी इंश्योरेंस या एक्चुरियल कंपनी को आउटसोर्स कर दिया जाता है। कुछ नियुक्तिकर्त्ता ग्रेच्युटी भुगतान को कॉस्ट टू कंपनी पैकेज के तहत दिखाते हैं, ऐसे में सीटीसी ऑफर में ग्रेच्युटी कटौती देखने को मिलती है क्योंकि नियुक्तिकर्त्ता द्वारा इसे अपने खर्च के तौर पर देखा जाता है।
अमूमन कंपनियों द्वारा बेसिक और महंगाई भत्ते के जोड़ का 4.81 प्रतिशत ग्रेच्युटी के तौर पर काटा जाता है। कुल मिलाकर रिटायरमेंट या संस्थान छोड़ते समय अंतिम माह के वेतन को 26 से भाग कर (चार रविवार छोड़) उसे 15 से गुणा करने पर जो राशि आएगी उसे जितने साल आपने संस्थान में काम किया है उससे गुणा करके ग्रेच्युटी की राशि प्राप्त करते हैं। फिलहाल ग्रेच्युटी बतौर मिलने वाली अधिकतम 3.5 लाख की राशि कर-मुक्त है। ऐसे में यदि नई योजना लागू हो जाती है, तो इसे कर के दायरे में लाने की संभावना है।
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि ग्रेच्युटी कर्मचारी का अधिकार है। प्रबंधन इस आधार पर इससे इनकार नहीं कर सकता कि कर्मी को भविष्य निधि और पेंशन का लाभ दिया जा रहा है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोई संस्थान किसी कर्मचारी को ग्रेच्युटी देने से इनकार नहीं कर सकता, क्योंकि संसद द्वारा पारित कानूनी प्रावधान को किसी अनुबंध या अन्य माध्यमों से नकारा नहीं जा सकता। न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी और आर.एम. लोढा की खंडपीठ ने हालिया फैसले में कहा, 'जहां तक ग्रेच्युटी के भुगतान का सवाल है, संबंधित कानूनी प्रावधान अन्य किसी अनुबंध से ऊपर हैं। ग्रेच्युटी पाने के अधिकार को किसी अनुबंध या अन्य माध्यम से खत्म नहीं किया जा सकता।'
उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में इलाहाबाद बैंक की इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। उच्च न्यायालय ने बैंक प्रबंधन को सेवानिवृत्त कर्मचारी को ग्रेच्युटी देने का निर्देश दिया था। बैंक का तर्क था कि कर्मचारी को पेंशन और भविष्य निधि जैसे लाभ दिए गए इसलिए उसे ग्रेच्युटी नहीं दी जा सकती। अदालत ने कहा कि ग्रेच्युटी कुछ विशेष परिस्थितयों में ही रोकी जा सकती है और इसके लिए सरकार की मंजूरी लेनी होगी।

2 comments:

मीत said...

bhai apki post se achi jankari mili kripya batayen ki yadi koi company gratuity dene se inkar karti hai to is sthiti me kya karna hoga....

Santosh said...

ठेकेदारी का आदमी की ग्रेजुटी का हकदार होता है क्या बताएं