पिछले दिनों खबर थी कि विदेशों में बैठे हैकर्स प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच गए हैं और पीएमओ के महत्वपूर्ण लोगों के खातों से छेडछाड की। ऎसे ही वाकिए पिछले साल भी सुनने में आए जब कुछ हैकर्स ने विदेश मंत्रालय में घुसपैठ की थी और अनेक दूतावासों के कंप्यूटर तंत्र को भेदने में सफल रहे थे। हैकिंग की समस्या देश के लिए सबसे बडी समस्या के रूप में उभरने लगी है।
साइबर आतंकवाद यानी हैकिंग। किसी व्यक्ति, कंपनी या सुरक्षा एजेंसी के गोपनीय दस्तावेज चुराने हो या उसकी साइबर सुरक्षा में सेंधमारी करनी हो, हैकर्स अपना काम चुटकियों में कर डालते हैं। ऎसे में उनके बुरे मंसूबों पर पानी फेरना बहुत मुश्किल साबित होता है। अगर यही हैकिंग सही मंसूबों के साथ की जाए तो यह इस साइबर आतंकवाद को रोकने का भी काम कर सकती है।
साइबर दुनिया। ऎसी दुनिया जो आज तेजी से समांतर दुनिया का रूप लेती जा रही है। ऑफिस का काम हो, दोस्तों के साथ गपशप हो, खरीदारी करनी हो या बिल चुकाना हो.. साइबर दुनिया में सबकुछ एक क्लिक पर होता है। जब यह दुनिया भी इतनी विशाल और व्यस्त होती जा रही है, तो यह आतंकवाद से कैसे दूर रह सकती है। जी हां, साइबर आतंकवाद यानी हैकिंग। किसी व्यक्ति, कंपनी या सुरक्षा एजेंसी के गोपनीय दस्तावेज चुराने हो या उसकी सायबर सुरक्षा में सेंधमारी करनी हो, हैकर्स अपना काम चुटकियों में कर डालते हैं। ऎसे में उनके बुरे मंसूबों पर पानी फेरना बहुत मुश्किल साबित होता है। अगर यही हैकिंग सही मंसूबों के साथ की जाए तो यह इस साइबर आतंकवाद को रोकने का भी काम कर सकती है। याद कीजिए फिल्म 'ए वेडनेसडे', जिसमें मुंबई के पुलिस कमिश्नर एक कंप्यूटर विशेषज्ञ किशोर को अपने दफ्तर में बुलाते हैं और उसके सभी नखरे सहते हैं। इस किशोर को एक मोबाइल फोन की लोकेशन ट्रेस करने का काम दिया जाता है और थोडी मशक्कत के बाद वह इसमें कामयाब भी हो जाता है। यह कोई काल्पनिक दृश्य नहीं, बल्कि हकीकत है। मुंबई एटीएस समेत दुनिया की ज्यादातर पुलिस आधुनिक आतंककारियों को दबोचने के लिए इसी तरह के विशेषज्ञों की सेवाएं ले रही हैं।
सरकारी सुरक्षा एजेंसियां ही नहीं, बडी कंपनियां भी इस बात के लिए आश्वस्त रहना चाहती हैं कि कहीं उनके साइबर तंत्र में कहीं चूक तो नहीं। इसी को सुनिश्चित करने के लिए वे भी इस तरह के विशेषज्ञों की भर्ती करती हैं, जो हैकिंग और कंप्यूटर की दुनिया के बादशाह होते हैं। सही मंसूबों के साथ हैकिंग करने की इस कला को नैतिक या एथिकल हैकिंग का नाम दिया जाता है। एथिकल हैकर आईटी सिक्योरिटी प्रोफेशनल होता है। उसमें वे सभी खूबियां होती हैं, जो एक हैकर में होती हैं। लेकिन वह इन तरकीबों का इस्तेमाल क्रैकिंग में न कर कंप्यूटर और साइबर वल्र्ड में सुरक्षात्मक उद्देश्यों के लिए करते हैं। इन्हें सुरक्षा विश्लेषक, पैनीट्रेशन टेस्टर्स भी कहा जाता है। ये कंपनी के इन्फॉर्मेशन सिस्टम को ब्लैकहैट हैकर्स से सुरक्षित रखते हैं। ब्लैकहैट हैकर बुरे मंसूबों वाले हैकर्स हैं। वे कंपनी के आईटी नेटवर्किग सिस्टम या सर्वर में तकनीकी घुसपैठ कर उसे नुकसान पहुंचाते हैं।
इन गडबडियों को रोकना इन्हीं प्रोफेशनल्स का काम होता है। वाई-फाई के माध्यम से इंटरनेट के उपयोग ने हैकिंग को और भी आसान कर दिया है। अहमदाबाद में हुए धमाकों से पांच मिनट पूर्व इंडियन मुजाहिदीन संगठन ने टीवी चैनलों को कथित रूप से एक ई-मेल भेजा था, जिसका स्त्रोत एसटीएस ने एथिकल हैकर्स की मदद से तुरंत पता लगा लिया था। इसके बाद नवी मुंबई के एक फ्लैट में छापा मारकर वहां रह रहे अमरीकी नागरिक हेवुड्स को गिरफ्तार किया गया। जब हेवुड्स से पूछताछ की गई तो उन्होंने चौंकाने वाली जानकारी दी। उन्होने बताया कि वे अपने लैपटॉप पर वाई-फाई के माध्यम से इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं और इन दिनों उनके बिल बहुत ज्यादा आ रहे हैं। इसका अर्थ यह था कि इस नेटवर्क को हैक कर आतंककारियों ने अपने मंसूबों को अंजाम दिया था।
सोशल नेटवर्किग वेबसाइट्स इन दिनों कंप्यूटर हैकिंग की पाठशाला बनती जा रही हैं। इन साइट्स पर कंप्यूटर के जरिए किसी की निजी जानकारियों को चुराने का तरीका सिखाया जा रहा है। ऑरकुट और फेसबुक पर ऎसे हजारों समूह हैं, जो हैकिंग के टिप्स और तकनीक बता रहे हैं। ये समूह तेजी से युवाओं के बीच पॉपुलर हो रहे हैं। कुछ नया करने की चाह रखने वाले युवा तेजी से ऎसे समूहों के मेंबर बन रहे हैं। स्पष्ट है कि जितनी तेजी से हैकर्स बढ रहे हैं, उन्हें रोकने के लिए एथिकल हैकर्स भी उतनी ही तेजी से सामने आ रहे हैं। पिछले दिनों खबर आई थी कि चीन के एक साइबर नेटवर्क ने भारत समेत करीब 103 देशों के सरकारी और निजी कंपनियों के गुप्त दस्तावेज में सेंधमारी की। हैकिंग के जरिए इस चीनी सायबर नेटवर्क ने तिब्बत के धर्मगुरू दलाई लामा तथा अन्य प्रमुख तिब्बती व्यक्तियों के कंप्यूटरों में भी घुसपैठ की। कनाडा की एक शोध संस्था ने यह खुलासा किया था। शुरूआत में कनाडा स्थित 'इनफॉर्मेशन वॉरफेर मॉनिटर' ने विस्थापित तिब्बती समुदाय के कंप्यूटरों में चीन के सायबर नेटवर्क द्वारा हैकिंग की जांच शुरू की, लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढती गई तो पता चला कि भारत समेत दुनिया के 103 देशों में हैकिंग के जरिए अतिमहत्वपूर्ण जानकारियां चुराई गईं। एथिकल हैकर ग्रेग वॉल्टन ने कहा कि उन्हें ठोस सबूत प्राप्त हुए हैं कि तिब्बती कंप्यूटरों में सायबर घुसपैठ की गई और दलाई लामा की गुप्त सरकारी तथा निजी जानकारियां निकाल ली गईं। उनकी जांच में यह सामने आया है कि यह हैकिंग नेटवर्क चीन स्थित है, लेकिन हैकिंग करने वाले या उनके उद्देश्य के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई।
एथिकल हैकर्स से मिली जानकारी के अनुसार भारत, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, रोमानिया और थाईलैंड समेत कई देशों के दूतावासों के कम्प्यूटर हैक किए जा चुके हैं। शिकार बनाने का तरीका यह है कि कंप्यूटर में हैकिंग के जरिए सेंध लगाने के बाद हैकर कंप्यूटर में ऎसा सॉफ्टवेयर डाल देते हैं, जो समय-समय पर उन्हें जानकारी भेजता रहता है। इस तरह की जांच में ब्रिटेन काकैम्ब्रिज विश्वविद्यालय भी मदद करता रहा है। साफ तौर पर जाहिर है कि एथिकल हैकर्स समय की मांग हैं। नेस्कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगले साल दुनियाभर में आईटी सिक्योरिटी एक्सपट्र्स की मांग 10 लाख तक पहुंच जाएगी। इनकी सबसे ज्यादा मांग मल्टीनेशनल कंपनियों, छोटे और मध्यम आकार के उपक्रमों में सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेटर, नेटवर्क सिक्योरिटी स्पेशलिस्ट या सिक्योरिटी विश्लेषक के रूप में है। बैंक, बीपीओ और फोरेंसिक आर्गेनाइजेशन्स भी अब इनकी मांग करने लगे हैं।
विदेश मंत्रालयों में सेंध
ईरान, बांग्लादेश, लातविया, इंडोनेशिया, फिलीपिंस, ब्रुनेई, बारबडोस और भूटान के विदेश मंत्रालयों के कंप्यूटरों से जानकारियों की चोरी की सूचना।
कहां से आया हैकिंग शब्द
इस शब्द का इस्तेमाल अमरीका के मेसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी (एमआईटी) में शुरू हुआ। यहां इस शब्द का अर्थ था, कोई भी काम चतुर ढंग से या विचारोत्तजक नई शैली में करना। अब हैकिंग का अर्थ है किसी कंप्यूटर या दूरसंचार प्रणाली को क्षति पहुंचाना।
पहली फिल्म
1983 में अरपानेट प्रणाली को विभाजित करके सैनिक और नागरिक धडों में बांट दिया गया और जन्म हुआ इंटरनेट का। इसी वर्ष रिलीज हुई फिल्म वॉरगेम्स में हैकिंग को काफी सकारात्मक रूप में पेश किया गया।
पहली ज्ञात हैकिंग
अगस्त 1986 मे केलिफॉर्निया विश्वविद्यालय की लॉरेंस बर्कले लैब के नेटवर्क मेनेजर क्लिफर्ड स्टॉल ने हिसाब खाते में 75 सेंट की गलती की जांच करते हुए पाया कि कुछ हैकर विभाग की कंप्यूटर प्रणाली के साथ छेडछाड कर रहे हैं। एक साल तक चली जांच के बाद हैकिंग के लिए जिम्मेदार पांच जर्मन व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया।
पहला वर्म
1988 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय के छात्र रॉबर्ट मॉरिस ने एक ऎसा वर्म प्रोग्राम बनाया जो किसी भी कंप्यूटर प्रणाली में पहंुचाए जाने के बाद अपने जैसे 6000 प्रोग्राम बना कर प्रणाली को ठप कर सकता है। रॉबर्ट मॉरिस को गिरफ्तार किया गया और उसे दस हजार डॉलर का जुर्माना, 400 घंटे अनिवार्य समाज सेवा और दोबारा यही अपराध करने पर तीन वर्ष कैद की सजा सुनाई गई।
जोनाथन जेम्स
जोनाथन किशोरावस्था में ही हैकिंग की दुनिया के ऎसे कुख्यात महारथी थे, जिन्हें अपराधों की वजह से गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने 16 साल की उम्र में डिफेंस थ्रेट रिडक्शन एजेंसी के सर्वर को ठप कर दिया था। यह एजेंसी अमरीका के रक्षा मंत्रालय की सुरक्षा के खतरों को कम करने का काम करती है। परमाणु व अन्य आधुनिक हथियारों की सुरक्षा में भी यह एजेंसी मदद करती है। वे नासा में भी सेंधमारी कर चुके हैं और अमरीकी न्याय विभाग के अनुसार 17 लाख के सॉफ्टवेयर चुरा चुके हैं। उन्हें कॉमरेड के नाम से जाना जाता है।
एड्रियन लामो
इनके खाते में न्यूयॉर्क टाइम्स और माइक्रोसॉफ्ट के सर्वर में घुसपैठ की कारस्तानी दर्ज है। ये खुद को होमलैस हैकर कहते हैं और सेंधमारी के लिए कॉफी शॉप, लाइब्रेरी या अन्य सार्वजनिक स्थानों के कंप्यूटरों की मदद लेते हैं। वे नामी कंपनियों के सर्वर ठप करते हैं और उन्हें उनकी कमजोरियों के बारे में बताते हैं। उन्होंने याहू!, बैंक ऑफ अमरीका और सिटी बैंक के सर्वर में भी आसान घुसपैठ की। न्यूयॉर्क टाइम्स के सर्वर में उन्होंने खुद को एक्सपर्ट की तरह शुमार किया और हाई-प्रोफाइल मामले देखने लगे। मामला अदालत तक गया और उन्हें कैद और जुर्माने की सजा मिली।
केविन मिटनिक
मिटनिक खुद को हैकर पोस्टर ब्वॉय कहते हैं। अमरीका के न्याय विभाग ने उन्हेंं अमरीकी इतिहास का सबसे वांछित कंप्यूटर अपराधी घोषित किया है। उनकी कारस्तानियों पर दो हॉलीवुड फिल्में भी बन चुकी हैं- फ्रीडम डाउनटाउन और टेकडाउनटाउन। उन्होंने हैकिंग की शुरूआत लॉस एंजिलिस के बस कार्ड पंचिंग सिस्टम में घसपैठ से की। इसके बाद वे मुफ्त यात्रा करने लगे। इसके बाद उन्होंने विभिन्न कंपनियों के महंगे सॉफ्टवेयर चुराना शुरू कर दिया।
रॉबर्ट टेपन मॉरिस
कंप्यूटर दुनिया का पहला ज्ञात वर्म बनाने वाले मॉरिस राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के वैज्ञानिक रॉबर्ट मॉरिस के बेटे थे। उन्होंने महज 16 साल की उम्र में इसे अंजाम दिया था। उनका कहना था कि उन्होंने इसे केवल परीक्षण के लिए बनाया था। सजा के बाद वे प्रतिभावान छात्र के रूप में उभरे और अब वे अमरीका के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। अब वे अपनी योग्यता का इस्तेमाल सकारात्मक कामों में ही कर रहे हैं।
अंकित फाडिया
तेरह वर्ष की उम्र में एक इंटरनेट मैगजीन को हैक करने और हैकिंग की 14 किताबें लिखने वाले मुंबई के अंकित फाडिया आज किसी स्टार से कम नहीं। 24 साल के अंकित कई नामचीन एजेंसियों और कंपनियों को सुरक्षा मुहैया करा रहे हैं। वे एमटीवी के व्हाट द हैक कार्यक्रम में भी नजर आ चुके हैं। अंकित कॉलेजों में कंप्यूटर हैकिंग से संबंधित लेक्चर्स देते हैं। उनकी सभी किताबें एथिकल हैकिंग पर हैं। साइबर टेररिज्म के क्षेत्र में उन्होंने दिल्ली पुलिस और सीबीआई की भी मदद की है। लिम्का बुक ऑफ रिकॉड्र्स के वर्ष 2002 के पांच विशिष्ट भारतीयों में भी उसका नाम शामिल हो चुका है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comments:
really very strange and amezing....
regards
Post a Comment